संदेश

सपने सुहाने लड़कपन के........

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 नमस्कार क्या हुआ आप सब को कुछ याद आया नाम से अरे ये सीरियल की नहीं रियल लाइफ की बाते हो री है, जो हमने और आपने  जिया है बचपन लड़कपन वाला..... वैसे ये नाम हमारे बचपन के लिए तो ठीक है लेकिन आज कल के बच्चों  के लिए तो फ़ोन वाला बचपन नाम बेहतरीन रहेगा..... हम तो मौका मिलते ही घर से ऐसे 🏃गुम हो जाते थे जैसे सदियों तक घर वापिस ही नहीं आना क्युकी वो छुप के घर वालो से खेलने जाने का भी अपना एक अगल ही मजा होता था...... आजकल के बच्चे तो मौका मिलते ही फ़ोन मेl ऐसे व्यस्त हो जाते है जैसे फ़ोन ही उनकी दुनिया हो..... ओर एक हमgt थे जिन्हे नोकिया 1100📲 मे स्नेक वाला गेम  खेलने के लिए भी छुप कर घर के किसी कोने मे बैठना पड़ता था.... 2-3 साल के बच्चे ऐसे फ़ोन चलते है जैसे अभिमन्यु की तरह वो फ़ोन चलाना सिख के आये हो.... आप सब का तो पता नहीं पर मुझे स्मार्ट फ़ोन Bs. c फाइनल ईयर मे मिला था वो भी कंपलसरी हो गया था... अगर आज सोचने बैठ जाये तो ऐसा मन करता है की काश वो दिन फिर से जिए जाये जहाँ नहीं तो किसी चीज की होड़ थी ना ही घमंड..... बस दोस्तों के साथ अपनापन ओर मीठी नौकजोक होती थी...😀 और दोस्तों के लिए लड़ना भी किस

अधूरा लेख.....

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                                                                             कई दीना में आज लिखन की सोची                                            कलम लिखन तै नाटगी                                               नूय बोली पल्हा कर पूरा वो लेख                                         जो रह रा अधूरा सै                                                           मका रै भोली कलम                                                           मत कुर्दे ढ़के जखमा नै                                                     बोली मैंने आज तू कायर लगे सै                                             जो लिखन नै नाटे सै.....                                                      मका रै कायर क्योनी                                             तू लेख लिखा ले किसे पे                                                       मेरा लगना घंटा आधा सै पर ना जिक्र करे उसका जो रह रा लेख अधूरा सै                    इसा तने छोढा कोनसा लेख अधूरा सै जैय चाली आज उस लेख पे सोच मेरी    यों पन्ना गिला हो जागा होजा चालना मुश्किल तेरा

घमंड

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चढ़ते सूरज मनै ढलते देखे है, घमंड करणीया मानस,  मनै निचे गिरते देखे है, वे जवानी मे जाते देखे है, घमंड करा जिसने इस काया का, रै वा नारी कोढ़ती देखी है, जिसने घमंड करा सुंदरता का, वो धनवान ग़रीबी मे देखा, जिसने घमंड करा माया का, वे ज्ञानी ठोंकर खाते देखे, जिसने घमंड करा बुद्धि का, रै मनै जगल मे वास करते देखे है, जिसने घमंड करा गृहस्ती का, रै मनै उनकी चढ़ती बेल कटती देखी है, जिसने घमंड करा अपने आपे का, रिश्ते नाते टूटते देखे, इस घमंड के चक्र मे, मनै भाई भाई लड़ते देखे है, रै मनै वे बालक मट्टी मे रूलते देखे है, जिनसे घमंड करा माँ बाप कि दौलत पे, रै सुन घमंड करणीये मानस, तु क्यूँ राजी हो रा है, मट्टी बरगी काया तेरी, के बेरा कद सी होजा ढ़ेर, यों हांडये घमंड तेरा बिखरा बिखरा...... 🌹🌹🙏🙏🌹🌹Nite Dalal Kuhar

एक हकीकत

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हकीकत भी देखी है, ख्वाब भी देखे है, देखे है सपने बंद आँखों से, तो खुली आँखों से भी देखे है, सपनो को हकीकत बनते भी देखा है, तो कुछ सपनो को टूटते भी देखा है बहुत हँसते है हम, खुद को रोते बहुत कम देखा है मुस्कान जाती नहीं चहरे से, इस मुस्कान पर कुछ को मरते, तो कुछ को चिढ़ते देखा है अपनी हंसी से पहचाने जाते है हमें तो अपनों का अपनापन  और दोस्तों कि दिलदारी पसंद है क्या कहे दोस्तों कि अजीब दास्तां होती है. दोस्तों मे लड़ना मिलने से भी अच्छा होता है लड़  के मनाने वाले भी होते है कुछ को चिड़ाना अच्छा लगता है सफर ट्रैन का हो या जिंदगी का ख़त्म नहीं होती बाते फिर भी खामोश रह कर मुस्कुराना अच्छा लगता है बैठ कर दोस्तों मे मिल गई जैसे पूरी दुनिया बाकि सब भूल जाना अच्छा लगता है एक प्यारा सा हमसफ़र है मेरा वो मुझसे मेरे सपनो को पूछा करते है हम हँस हँस के यूँ ही टाल दिया करते है सोचा क्या होगा बताने से इस बहाने से खुद को रोक लिया करते है पर वो भी किसी बहाने से पूछ ही लिया करते है सच कहुँ तो हम हँस के यूँ ही टाल दिया करते है क्युकी मुझे लिखने कि रूचि है जिंदगी का हाल बंया किये जा रही हूँ विराम स

बेचारा जमींदार

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आप सब ने आज उसके बारे मे बतलाऊ सू जिसने जाने या दुनिया सारी पर कदर ना जानी किसे नै इस बेचारे जमींदार कि बचपन तै ये शोक था इसने  बाबू का हाथ बैटान का धर कंधे पर कसी यों बाबू कि गैल्य खेत मे जाया करता कदे नाके पे कदे खेत मे पानी बाहा करता ज़ब आती माँ लेके रोटी पैल्य बाबू नै खवाया करता फेर भर होका बाबू का तु पी होका बाबू मै सभालू नाके नै बड़े प्यार तै बोला करता जब होगा स्याना इसने वा जिम्मेदारी सभाली सारी तु कर अराम बाबू इब मै करुँगा जमीदारा बड़े शान तै या बात कही थी बाबू कि आंख मे पानी था रै उसने बैरा था  इब पलहे आला जमीदारा जमीदारा ना रह रा पर कोई ओर चारा भी तो ना था जिसते खाया कमाया जा इब तो ओर बोझ बढ़गा था माँ बाबू गैल्य बालका के भी खर्चे होंगे थे ऊपर तै या महगाई बढ़गी फसला के दाम कम अर खाद बीज के दुगने होंगे आये साल सोचा करता इबके तै अपनी भी लाऊ जुती नई पर फेर याद आते वे होली दिवाली जिन पे बालका कि रीस पुगानी थी  कुछ साल पाछे उसका ढ़ग कुछ इसा होगा आप रखा वोये ट्रैक्टर मैसी पुराना पर ले कर्जा उसने बालक लायक बना दिए सोचा करता इब सुख के दिन आवेंगे पर उसने के बेरा था कीमे तो मार रख

बेटी बचायो बेटी पढ़ाओ

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बैठी बैठी सोचु थी  बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ यो अभियान क्यूकर आगे बढाया जावे फेर सोचा सबते पल्हे तो या सोच बदली होगी बेटा बेटी एक समान या बात समझानी होगी, ना तो वा ये पुरानी रीत रह गी बेटा ना पढाओ बेटी घर का काम करेगा जब तो कहू हूँ यो अभियान आगे बढ़ाओ काई बे तो नुय सुन के मन घबरा जा से जाननी होके भी वा हत्यारन कहलावे सै उनते भी समझाना होगा यो पाप रोकना होगा बेटी तै जीवन दिलाना होगा यो अभियान आगे बढ़ाना होगा न्हु कहा करै सै डॉक्टर भगवान होवे पर के कहना उस भगवान का जो मार के बेटी नै कोख में पाप कमारा सै  पर इतना भी न होया कर सै  जो ले उपाधी भगवान की शैतान का काम कर सै  समझदार ने तो इसारा ये काफी हो सै ना तो भगवान उतर जा धरती पे जब के यो कुलयुग बदले सै  जबै तो कहु हूँ यो अभियान आगे बढ़ाओ कुछ उदाहरण बताने होंगे और तो कोई जरिया न इंते ये समझाना होगा वा इंदिरा भी तो किसी की बेटी थी जो देश ने चला रही थी थी कल्पना भी तो एक छोरी जो अंतरिक्ष में यान गुम री थी लागे से ये बात पुरानी होगी कुछ नई बतानी होगी वे भिवानी की भी तो छोरी से जो पलहवानी में छा री सै अपना अपना न देश का मान बढ़ा री

सपने

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रख हौसला उसे पाने का  त्रास त्रास कर खुद को इस काबिल तो बना कि तु नहीं मंजिले तुझे ढूंढे  कर मेहनत जी लगा कर हर कदम पर फिर एक नई ड़गर होगी जिधर देखेगा आँखे उठा कर  मंजिले ही मंजिले होंगी मुकदर बदलेगा होगा रोशन नाम तेरा   युही नहीं कहती ये दुनिया कि मेहनत कर फल जरूर मिलेगा इसी सोच के साथ  हर रोज नये अफसाने लिखता चल खुद के दम पर एक नई पहचान बना तुझे नहीं तेरे नाम से जाने जाये माँ बाप तेरे हो उन्हें भी नाज तुझे पर जब अनजाने मे ही सही किसी से तारीफ तेरी सुने सपना नहीं हकीकत बना इसे लड़ खुद से कि अब रुकना नहीं  किसी मोड़ पर पत्थर आये या सैलाब आये रस्ते मे तैर कर नहीं डट कर पार करना है युही नहीं बनता नाम इसके लिए तो पसीना भी बेचना पड़ता है ज़ब जाकर वो सपने तु खरीद पायेगा फिर भी कई बार हार मान कर  रख सपनो को साइड मे चैन कि नींद सोयेगा ज़ब आँख खुलेगी हड़बड़ाहट मे इधर उधर भागेगा क्या सपना आया था उसको याद करेगा और फिर से एक नई सोच के साथ ट्रैक पे दौड़ेगा अब कि बार नींद मे नहीं खुली आँखों मे सपने देखेगा हर रोज फिर एक नई कहानी लिखेगा एक दिन युही तुझे खबर मिलेगी तेरी आँखों मे आँसु और  दिल मे खुश

मतलबी दुनिया

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झूठे सारे रिश्ते नाते होंगे भाई भाई का दुश्मन होगा बोझ लागन लागे सगे माँ बाप रै इसी मतलबी या दुनिया होंगी..... घने लाड्डा तै पाली वा बाहन आज हक मांगन लगी होजा कीमे काम  तै वा भाई ने नाटन लागी इसी मतलबी या दुनिया होंगी.... कदे हाथ पकड़ रै कदे कन्धा पे झूलाया करता  अपने कालजे के टुकडा नै घने लाडले राखा करता आज पड़ा ज़ब माडा बख्त उस बाबू पै रै वे बेटा बेटी पूछन तै नाटे सै इसी या मतलबी दुनिया होंगी..... नौ महीने कोख मे राखे ज़ब जाके या काया पाई अर आज उसके कर्ज भूलगे सारे ऊपर आला भी घबरागा देख यों नज़ारा इसी मतलबी या दुनिया होंगी..... रै बंदे या जिंदगी तो उस माट्टी कि तरिया है के बेरा कद ढेर होजा रिश्ते नाते सारे निभायो दिल तै माँ बाप कि कदर करण लाग जाओ धरती पै ये स्वर्ग मिल जागा ना तो इस सुख सुख के चक्र मे या सारी जिंदगी कट जगी पर ना वो सुख मिलेगा ना वो अपना का प्यार मिलेगा अपने आप नै बदलो या मतलबी दुनिया आपे बदल जागी 🌹🌹🙏🙏🌹🌹 Nite Dalal Kuhar

जश्न

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सुन वो बच्चो का शोर मेरे दिल मे अजीब सी हलचल हुई, बन गुनगुनाहट फिर वो होठो  पे  आ  रुकी, वा क्या बात ये कहते हुए किसी ने दरवाजे के अंदर दस्तक दी,अरे कुछ नहीं वो याद आ गए थे बचपन वाले दिन, ज़ब हम हाथ मे लिए तिरंगे को इतराया करते, और अपने वतन के नारे लगाया करते, पर अब तो दिन और माहौल कहा, अब तो हमें समझ भी आ गया है कि आजादी चरखे से नहीं फंदो से मिली थी, ना जाने कितने झूले फंदो पर, कितनो ने खाई गोली थी, भारत के वीर शहीदों ने खेली खून कि होली थी, आज़ादी के लिए समर्पित, वो आज़ाद-भगत कि टोली थी, मरते - मरते भी ना छोड़ी वो इंकलाब कि बोली थी, ज़ब जाकर टूटी वो, गुलामी कि जंज़िरे थी, उस समय कि तो वो प्रेम कहानी भी बड़ी चर्चित है, रांझा जिसमे भगतसिंह और हीर आज़ादी रही होंगी जिसमे, फिर भी ना जाने क्यों लोग कहते फिरते है चरखे से मिली आज़ादी थी, एक और महान शख्सियत हुई है जिन्होंने खून के बदले आज़ादी के नारे लगाए थे, और बना हिन्द फौज अंग्रेजो के खिलाफ खडे हुए थे, युही नहीं मिली आज़ादी उन्होंने भी तो अपने घर  परिवार को त्यागा था,, ज़ब जाकर टूटी वो भारत माँ के हाथो और परो कि जंजीरे  थी, देख खून कि होली

अहमियत

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दोस्तों के साथ महफिल मै बैठी हुई थी, किसी ने ऐसे ही चर्चे उठा दिए गुज़रे हुए जमाने के       कि अब वो पहले वाला कुछ नहीं रहा, किसी ने कहा रिश्ते नाते बदल गए, किसी ने कहा वो सादगी भोलापन नहीं रहा किसी मे, ऐसे ही एक के बाद एक सब टिप्पणीया देते जा रहे थे, मै जो अकेलापन हो या ख़ामोशी हो उसमे चुप नहीं रह सकती तो ये क्या मंजर  था, कुछ बोलती मै उससे पहले किसी ने कहा क्या हुआ आज आपके लब्जो को शब्द नहीं मिल रहे क्या अरे कुछ नहीं सोच रही हु क्या बाते लेकर बैठ गए हो  आप सब, जियो ना जिंदगी को एक दिन कि हो या चार दिन कि बस उससे जियो ऐसे जैसे जिंदगी तुम्हे नहीं तुम जिंदगी को मिले हो, रही बात सादगी कि और भोलेपन कि नज़रे गुमा के देखो तो सही वो महफ़िलो मे नहीं घर मे ही मिल जायेगी क्युकि          हसाना हर किसी को आता है          रुलाना भी हर किसी को आता है          रुला कर जो मना ले वो पापा है           रुला कर जो साथ रो पड़े वो माँ है बचपन मे कहते थे जवानी अच्छी होंगी जवानी मे तो बुढ़ापे का इंतज़ार कर रहे है कि आराम से जिन्दगी को जियेंगे, और बुढ़ापे मे आये तो कहते है वो बचपन ही अच्छा था ना कोई टेंसन

हरा भरा म्हारा हरियाणा

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सदा रै हरा भरा यों म्हारा हरियाणा ऊपर अम्बर कि छाया,  निचे धरती पे बना रै सदा भाईचारा हरा भरा रै म्हारा हरियाणा..... उठे  झाल बदन मे देख खेता के म्ह हरियाली मन खुश होजा देख कै नै बॉडर पे जवान म्हारा अर खेता  मे किसान म्हारा हरा भरा रै म्हारा हरियाणा..... बीरा की तो वा झलक कै प्यारी सै दामन कुर्ता पहर कै चाल्य  अर ओढ़ कै नै वा घोटे आली चुदड़ी  डट डट कै नै पग धरै सै फेर उठे वा लहर दामन कि हरा भरा रै म्हारा हरियाणा..... मर्दा का तो वो ढीठोरा ये न्यारा सै निचे धोती ऊपर कुर्ता  सर पै रह सदा मान वा पगड़ी बोली मे सदा अकड़ रै सै पर लागे सै घणी प्यारी हरा भरा रै म्हारा हरियाणा..... खेल कबड्डी कुस्ती मे  नंबर 1 सै म्हारा हरियाणा हर मैदान मे आगे पावे  छैल घाबरू हरियाणा कै भगवान तेरे तै बस या ये दुआ सै  बना रै सदा म्हारा यों ये रुतबा  हरा भरा रै म्हारा हरियाणा....... 🌹🌹🙏🙏🌹🌹 Nite Dalal Kuhar

इंतज़ार

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शाम होने को थी हर साल कि तरह मे उसे हाथ मे थामे हुए सोच मे डूबी हुई थी सोच कि इसी दौड़ के बिच ऐसा लगा मानो किसी ने रुकने को बोला हो पीछे मूड कर देखा तो पापा जी चाय के लिए पुकार रहे थे हड़बड़ाहट के साथ वही हाथ झाड मे दोड़ी चाय बनाने को  पता नहीं कब से पुकार रहे होंगे इसी गुनगुनाहट  के साथ चाय बना रही थी फिर आई अंदर तो मेरी टिक टिक बोलती घड़ी कि तरफ नज़रे गई मानो जैसे वो मुझे कुछ याद दिलाने कि कोशिश कर रही हो ओहो खाने का टाइम होने को है इसी सोच के साथ मै फिर सै रसोईघर मे घुस गई  अब मानो मेरी वो पहले वाली सोच मेरे ख्वाबो से भी कोसो दूर थी सभी को खाना देकर मै खाना खाने ही वाली थी कि मुझे झटका सा लगा कुछ याद आने पर मेरी धडकने तेज तेज दौड़ने लगी इसी बेचैनी के साथ मेरी खामोश नज़रे तेजी से इधर उधर दौड़ने लगी इसी बिच किसी ने  पूछा क्या देख रही हो ऐसी  बेचैनी के साथ सुनते ही ये बात जैसे मेरी आवाज़ ही गुम हो गई हो इधर उधर से कोई और बात होती इतने मे ही देखो मम्मा मुझे क्या मिला है  ये कहता हुए मेरा बेटा मेरे पास आया देखते ही उसके हाथो मे उसे मै घुटनो के बल झुकी और बेटे को गले से लगा लिया मानो जै

सफर जिन्दगी का

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सफऱ जिन्दगी का कुछ यु शुरू हुआ हमारा पकड़ हाथ माँ बाप का चलते चले गए जैसे बदला तूने वैसे बदलते चले गए   सोचा भी ना था जिन्दगी मे ऐसे भी फ़साने होंगे          रोना भी जरूरी होगा और आँसु भी छुपाने होंगे   फिर आया एक दिन समझ मे बदल जाओ वक़्त के साथ, या फिर वक़्त बदलना सीखो  मजबूरियों को मत कोसो हर हाल मे चलना सीखो यही तो दस्तूर है जिन्दगी का जिसे हर हाल मे अपनाते चलो जिन्दगी की हर सुबह कुछ शर्ते लेकर आती है और हर शाम कुछ तजुर्बे देकर जाती है कह दो जो बात जरूरी हो क्युकी कभी कभी जिन्दगी बेवक्त पूरी हो जाती है  ये तो पानी के उस बुलबुले की तरह है जो जोर से ऊपर उठती है और फिर धड़ाम से  ढेर हो जाती है  इसी सोच के साथ जिन्दगी को कुछ इस कदर जिए जा रहे है हम कि ना छोड़ेगे साथ अपनों का और खुल के जिया करेंगे क्युकी जिन्दगी तो हर रोज मिलती है मौत है वो तो जो एक बार आती है कल ना हम होंगे, ना कोई गिला होगा बस सिमटी हुई यादो का सिलसिला होगा जो लम्हे है चलो एक दूसरे के साथ हँस कर बिताये क्या पता जिन्दगी का कल क्या फैसला हो. देख जिंदगी के यूँ बदलते रूप हमने भी कह दिया है ये जिन्दगी अपनी रफ़्तार पे न

माँ

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चलो थम सारे ने अपनी माँ के बारे मे बतलाऊ, उसकी शान निराली, ढग निराला, अर वो प्यार करण का अंदाज निराला सै, मार के ने थपड वाला गळ्या रोया करे सै, औरा का तो बेरा ना पर अपनी जिंदगी तो माँ पे शुरू होके उसपे ये ख़त्म होवें सै, वो भी बख्त ये गजब का था ज़ब माँ छोटे छोटे कै म्हारे लाड लड़ाया करती, म्हारे ते पहले उठ के वा काम कर लिया करती, चाय बना के फेर वा हम सारा न  ठाया  करती कदे बाला मे हाथ फेरती, कदे छाती के लाके लाड लड़ाती, भलो के नै हम सारा नै चाय मे दूध मिला कै प्या जाती ज़ब होता बख्त स्कूल का माँ हमनें त्यार करा करती, बना चंट मंट  माँ फेर हमने स्कूल भेजा करती,ज़ब आते स्कूल मे त माँ बाट देखती पाया करती, म्हारी भी वा आदत कसूती थी चाये माँ आगे बैठी पाती फेर भी एक माँ रुका मारा करते वो भी टाइम  कसुता याद आवै  सै ज़ब खेल खेल मे पड़ जाया करते माँ ओर दो ऊपर ते मर कै फेर लाड लड़ाया करती, टाइम बदल गा हम बदलगे छोटे, तै बड़े होंगे पर एक चीज ना बदली ना माँ अर ना माँ का प्यार बदला, इब भी वा म्हारे तो उतना ये प्यार करे सै, होजा किमे म्हारे वा म्हारे ते पहले रोवे सै,  कई बे सोच के जी घबरा जा सै, इब

छाई हुई खामोशीया

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टहलने  क्या निकले आज तो कयामत आई गई चलते चलते कुछ शोर सुनाई दिया आगे पीछे दाये बाये झट से नज़रे घुमाई कुछ ना दिया दिखाई, फिर ना दिया शोर सुनाई बहम होगा मेरा ये सोच आगे कदम बढ़ाये हमारी तो किलकारियों पर ग्रहण सा लग गया हो जैसे फिर से ये फुसफुसाहट दी सुनाई दिल सहम सा गया जब ऊपर नज़रे घुमाई क्युकी ये कोई और नहीं दो पेड़ की टहनिया  बन हमदर्द एक दूसरे का दर्द बाँट रही थी देख मुझे वो भी घबराहट मे बोली जा रहे मुसाफिर  तेरी बांट देख रहा है रास्ता फिर कर हिमत क्या हाल है तुम्हारा मैंने भी पूछ लिया होकर आँगबबूला दोनों ने ऐसे देखो मुझे मानो जैसे मैंने किसी तेज धार से उनपे वार किया हो तुम क्या पूछ रहे हो तुम्हारी ही ती देन है जो ग्रहण लगा हुआ है हमारी किलकारियो पर कल तीज है सायद तुम्हे याद नहीं है देखो गुमा कर नज़रे चारो तरह छाई हुई खामोशीया है ये तुम्हारी ही तो बदौलत है ना कोई झूल है ना कोई झूलने वाला  हमने तो किया इंतज़ार पुरे साल है फिर भी ना कोई तीज है  ना कोई किलकारी जो मिल हमरी किलकारियों के साथ खिल उठे अब बोलो क्या हमारी गलती है  जो झूलो को तुमने त्याग दिया इससे ही तो हमरी रौनक है

स्त्री तेरी कहानी

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हर कदम पर देखो, तो बस एक वही कहानी है डगमगाती रहो मे, धुंधलाती सी जिंदगानी है हाथो मे छाले  तो आँखों मे पानी, घर की चार दीवारों मे क्यों पिस्ता है तन, हर अरमान हर ख्वाइस क्यों है मन मे दफन, एक अधूरा सा अस्तित्व एक दभी सी आवाज़, सवेरे से अँधेरे तक एक के बाद एक हज़ारो काज, जब निकली तु घर से बाहर करने हर सपना साकार, तो फिर झेला कही उत्पीड़न, कही शोषण, तो कही बलत्कार कितने ही मौत की गागर मे सो जाती है कितनी ही रेल की पटरियों पर लहूलुहान हो जाती है फिर भी ना कोई शोर ना कोई आगाज़, कुछ अखबारों की सुर्खिया बन बस गुमनामी के अँधेरे मे खो जाती है कितनी ही शक्ति स्वरूप दहेज की शिकार है कही सास नन्द के तने, तो कही पैसा , तो कही गाड़ी लगी बस फरमाइसो की कतार है फिर भी मा बाप की मान मर्यादा के खातिर हर जख्म, हर घाव , यहां तक की जलना भी स्वीकार है कैसे होगा तेरा उत्थान ज़ब नारी ही नारी की दुश्मन हो जाती है कर कन्या भूर्ण हत्या, जननी होकर भी हत्यारिन कहलाती है, लगता है कल्पनायो मे भी ये संसार बड़ा विचित्र बड़ा नवीन अगर हो जाये सर्वत्र मात्र पुरुष ही अकेला आसीन. कुरीतियों के भंवर मे डगमगाती सी है तेर

अकेलापन

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किसी का डर  तो किसी का दुश्मन डरते वो लोग है जिन्हे महफिले पसंद है दुश्मन उन्हीं का जो खुद को टटोलना नहीं चाहते  वरना ये तो वो है जिनसे गिरे हुए को उठना ललखड़ाते हुए को चलना सिखाया है त्रास त्रास कर इसी ने मूर्खो को विद्यान बनाया है कई बार तो लोग घबराकर इससे लोग महफिले सजाते है  और बोतले खोलते है पर उन्हें का पता महफ़िलो से अच्छा तो ये अकेलापन है   जो उन्हें उससे रूबरू करवाता है जो उसका खुद का है जीने का तो इसी के साथ मजा है और तो बेगाने है यहां सब ये तो एक सच्चा साथी है जो बन कर परझाई सदा हमें याद दिलाता तू अकेला नहीं तेरे साथ खड़ा हु मै मेरा भी कुछ हु हाल है जब से इसे साथी बनाया है इसने मुझे इस काबिल बनाया है कि कुछ विचार कर सकू सोच सकू फिर त्रास कर पन्नों पर उतर सकू जैसे कि अब इस अकेलेपन को नज़रो के सामने उतरा है 🌹🌹🌹👍👍👍 Nite Dalal Kuhar