घमंड

चढ़ते सूरज मनै ढलते देखे है,
घमंड करणीया मानस,
 मनै निचे गिरते देखे है,
वे जवानी मे जाते देखे है,
घमंड करा जिसने इस काया का,
रै वा नारी कोढ़ती देखी है,
जिसने घमंड करा सुंदरता का,
वो धनवान ग़रीबी मे देखा,
जिसने घमंड करा माया का,
वे ज्ञानी ठोंकर खाते देखे,
जिसने घमंड करा बुद्धि का,
रै मनै जगल मे वास करते देखे है,
जिसने घमंड करा गृहस्ती का,
रै मनै उनकी चढ़ती बेल कटती देखी है,
जिसने घमंड करा अपने आपे का,
रिश्ते नाते टूटते देखे,
इस घमंड के चक्र मे,
मनै भाई भाई लड़ते देखे है,
रै मनै वे बालक मट्टी मे रूलते देखे है,
जिनसे घमंड करा माँ बाप कि दौलत पे,
रै सुन घमंड करणीये मानस,
तु क्यूँ राजी हो रा है,
मट्टी बरगी काया तेरी,
के बेरा कद सी होजा ढ़ेर,
यों हांडये घमंड तेरा बिखरा बिखरा......
🌹🌹🙏🙏🌹🌹Nite Dalal Kuhar




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