बेचारा जमींदार
आप सब ने आज उसके बारे मे बतलाऊ सू जिसने जाने या दुनिया सारी पर कदर ना जानी किसे नै इस बेचारे जमींदार कि बचपन तै ये शोक था इसने बाबू का हाथ बैटान का धर कंधे पर कसी यों बाबू कि गैल्य खेत मे जाया करता कदे नाके पे कदे खेत मे पानी बाहा करता ज़ब आती माँ लेके रोटी पैल्य बाबू नै खवाया करता फेर भर होका बाबू का तु पी होका बाबू मै सभालू नाके नै बड़े प्यार तै बोला करता जब होगा स्याना इसने वा जिम्मेदारी सभाली सारी तु कर अराम बाबू इब मै करुँगा जमीदारा बड़े शान तै या बात कही थी बाबू कि आंख मे पानी था रै उसने बैरा था इब पलहे आला जमीदारा जमीदारा ना रह रा पर कोई ओर चारा भी तो ना था जिसते खाया कमाया जा इब तो ओर बोझ बढ़गा था माँ बाबू गैल्य बालका के भी खर्चे होंगे थे ऊपर तै या महगाई बढ़गी फसला के दाम कम अर खाद बीज के दुगने होंगे आये साल सोचा करता इबके तै अपनी भी लाऊ जुती नई पर फेर याद आते वे होली दिवाली जिन पे बालका कि रीस पुगानी थी कुछ साल पाछे उसका ढ़ग कुछ इसा होगा आप रखा वोये ट्रैक्टर मैसी पुराना पर ले कर्जा उसने बालक लायक बना दिए सोचा करता इब सुख के दिन आवेंगे पर उसने के बेरा था कीमे तो मार रख