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छाई हुई खामोशीया

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टहलने  क्या निकले आज तो कयामत आई गई चलते चलते कुछ शोर सुनाई दिया आगे पीछे दाये बाये झट से नज़रे घुमाई कुछ ना दिया दिखाई, फिर ना दिया शोर सुनाई बहम होगा मेरा ये सोच आगे कदम बढ़ाये हमारी तो किलकारियों पर ग्रहण सा लग गया हो जैसे फिर से ये फुसफुसाहट दी सुनाई दिल सहम सा गया जब ऊपर नज़रे घुमाई क्युकी ये कोई और नहीं दो पेड़ की टहनिया  बन हमदर्द एक दूसरे का दर्द बाँट रही थी देख मुझे वो भी घबराहट मे बोली जा रहे मुसाफिर  तेरी बांट देख रहा है रास्ता फिर कर हिमत क्या हाल है तुम्हारा मैंने भी पूछ लिया होकर आँगबबूला दोनों ने ऐसे देखो मुझे मानो जैसे मैंने किसी तेज धार से उनपे वार किया हो तुम क्या पूछ रहे हो तुम्हारी ही ती देन है जो ग्रहण लगा हुआ है हमारी किलकारियो पर कल तीज है सायद तुम्हे याद नहीं है देखो गुमा कर नज़रे चारो तरह छाई हुई खामोशीया है ये तुम्हारी ही तो बदौलत है ना कोई झूल है ना कोई झूलने वाला  हमने तो किया इंतज़ार पुरे साल है फिर भी ना कोई तीज है  ना कोई किलकारी जो मिल हमरी किलकारियों के साथ खिल उठे अब बोलो क्या हमारी गलती है  जो झूलो को तुमने त्याग दिया इससे ही तो हमरी रौनक है

स्त्री तेरी कहानी

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हर कदम पर देखो, तो बस एक वही कहानी है डगमगाती रहो मे, धुंधलाती सी जिंदगानी है हाथो मे छाले  तो आँखों मे पानी, घर की चार दीवारों मे क्यों पिस्ता है तन, हर अरमान हर ख्वाइस क्यों है मन मे दफन, एक अधूरा सा अस्तित्व एक दभी सी आवाज़, सवेरे से अँधेरे तक एक के बाद एक हज़ारो काज, जब निकली तु घर से बाहर करने हर सपना साकार, तो फिर झेला कही उत्पीड़न, कही शोषण, तो कही बलत्कार कितने ही मौत की गागर मे सो जाती है कितनी ही रेल की पटरियों पर लहूलुहान हो जाती है फिर भी ना कोई शोर ना कोई आगाज़, कुछ अखबारों की सुर्खिया बन बस गुमनामी के अँधेरे मे खो जाती है कितनी ही शक्ति स्वरूप दहेज की शिकार है कही सास नन्द के तने, तो कही पैसा , तो कही गाड़ी लगी बस फरमाइसो की कतार है फिर भी मा बाप की मान मर्यादा के खातिर हर जख्म, हर घाव , यहां तक की जलना भी स्वीकार है कैसे होगा तेरा उत्थान ज़ब नारी ही नारी की दुश्मन हो जाती है कर कन्या भूर्ण हत्या, जननी होकर भी हत्यारिन कहलाती है, लगता है कल्पनायो मे भी ये संसार बड़ा विचित्र बड़ा नवीन अगर हो जाये सर्वत्र मात्र पुरुष ही अकेला आसीन. कुरीतियों के भंवर मे डगमगाती सी है तेर

अकेलापन

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किसी का डर  तो किसी का दुश्मन डरते वो लोग है जिन्हे महफिले पसंद है दुश्मन उन्हीं का जो खुद को टटोलना नहीं चाहते  वरना ये तो वो है जिनसे गिरे हुए को उठना ललखड़ाते हुए को चलना सिखाया है त्रास त्रास कर इसी ने मूर्खो को विद्यान बनाया है कई बार तो लोग घबराकर इससे लोग महफिले सजाते है  और बोतले खोलते है पर उन्हें का पता महफ़िलो से अच्छा तो ये अकेलापन है   जो उन्हें उससे रूबरू करवाता है जो उसका खुद का है जीने का तो इसी के साथ मजा है और तो बेगाने है यहां सब ये तो एक सच्चा साथी है जो बन कर परझाई सदा हमें याद दिलाता तू अकेला नहीं तेरे साथ खड़ा हु मै मेरा भी कुछ हु हाल है जब से इसे साथी बनाया है इसने मुझे इस काबिल बनाया है कि कुछ विचार कर सकू सोच सकू फिर त्रास कर पन्नों पर उतर सकू जैसे कि अब इस अकेलेपन को नज़रो के सामने उतरा है 🌹🌹🌹👍👍👍 Nite Dalal Kuhar